भारत एक प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य है। यहां पर विभिन्न प्रकार की संस्कृति भाषा शैली वेशभूषा एवं अनेक प्रकार के धर्म के लोग एक साथ निवास करते हैं ।इस प्रकार अनेकता में एकता भारतवर्ष की सबसे बड़ी विशेषता है । भारत का प्राचीन नाम आर्यावर्त है इसे हिंदुस्तान एवं इंडिया भी कहते हैं। आर्यावर्त की उत्तर दिशा में स्थित हिमालय इसके मस्तक पर मुकुट की भांति शोभायमन है एवं दक्षिण दिशा में स्थित विशालकाय समंदर निरंतर इसके चरणों को पखारता है अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त आर्यावर्त के विशाल अभ्यारण में विभिन्न प्रकार की प्रजाति के पशु पक्षी निरंतर ही इसके आकर्षण मे वृद्धि करते रहते हैं। यहां के वन प्रदेशों में विशालकाय वृक्षों की मूकबद्ध एवं क्रमबद्ध पंक्तियां किसी साधनारत साधु की साधना का स्मरण कराती हुई प्रतीत होती हैं चंद्रिका चर्चित यामिनी की इस स्तब्ध निशा में समूचे आर्यावर्त का सौंदर्य देवताओं को भी यहां आने के लिए लालायित एवं विवश कर देता है ।समूची पृथ्वी पर आर्यावर्त एक महान आध्यात्मिक भूखंड है इसकी पूर्व दिशा में स्थित जगन्नाथ पुरी पश्चिम दिशा में स्थित द्वारिका पुरी दक्षिण दिश...
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वृक्षारोपण। मत करो यह जुल्म प्रकृति पर। मत काटो वृक्षों को। अरे आग से छेड़छाड़ अच्छी नहीं जल जाओगे झुलस जाओगे। और प्रकृति के इस भीषण तांडव को तुम सहन नहीं कर पाओगे। ना ही कोई मौसम होगा ना शीत, ना वर्षा बस गर्मी में ही झुलस कर मर जाओगे । ना रोका अगर प्रदूषण को तो प्रकृति को संतुलित नहीं कर पाओगे। संभल जाओ नियंत्रित करो प्रदूषण को और वृक्षारोपण भी क्योंकि थोड़े असंतुलन को संतुलन में लाना कोई मुश्किल काम नहीं। पर असंतुलन के बृहद,रूप को संतुलित कर पाना आसान नहीं। अरे जानवरों में तो बुद्धि नहीं होती तुम तो मनुष्य हो बुद्धि बल का प्रयोग करो। पर्यावरण को स्वच्छ बनाओ और वृक्षारोपण करो । क्योंकि वृक्षारोपण ही संजीवनी है पर्यावरण के लिए। और प्रदूषण को हटाना ही होगा एक स्वस्थ जीवन के लिए। तो उठो कमर कस लो कसम खा लो एक एक वृक्ष लगे लगाने की। पर्यावरण को प्रदूषण से निजात दिलाने की। अरे बूंद बूंद करके ही घड़ा भर जाता है यह कहावत है पुराने जमाने की । श्रीमती पूजाअग्निहोत्री दुबे।
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Astrology is essential to the entire world - the way the lamp feed the darkness and by producing light, it brings the entire topic in vision. The entire theme object can be known by generating light in the darkness of the flame of the astrology. And many benefits can be obtained. Just as the clock suites also give a stupid person to a stupid person, in the same way, the planets located in Brahma Mandal are also helpful in providing the right direction by doing the right knowledge of the time. In ancient times, man had special attention to Bella. And had special reverence on Muhurta etc. From the birth of human beings to Vidya Studies, Yagwat Sanskar, marriage rites, and death, was emphasized on Muhurana Sadhana. Karma is the head in this world, but the work done in the right Muhurta is helpful in reaching her floor or the karma in the wrong time becomes redundant. Thus, there is a special place in astrology. As where the Ramcharitmanas has gone. Regret the time lapse. The rain dries wh...
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Manglik Yoga in Birth Horoscope - Whenever it is a matter of Birth Horoscope. Then most discussions are of Manglik Yoga. People get worried when they hear the name of Mangal Dosha in the birth journal. But this is a type of yoga. Being a Manglik Yoga is not always a matter of concern. Because Manglik Yoga has two types of conditions. An auspicious manglik is yoga and the other is unlucky manglik yoga. First of all, know how Manglik becomes Yoga. When Mars is present in the first IV octam Ashtam and Dwadesh Bhava of the birth magazine, then the magazine becomes Manglik Yog. In auspicious Manglik Yoga, the native is rich in charming personality. Wealth is rich in wealth. is courageous and mighty. Mother also advances the land building and thrives from there. Mathematics finds advancement in the subject field. sharpness is the master of wisdom. conquers enemies. Achieves high office life partner. attains force in the age zone. achieves lucky and administrative service. High quality income...
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।स्वरचित कविता श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दबे। ।।श्री राम अमृत।। श्रवण करो श्री राम नाम। संपूर्ण सुलभ होंगे सब काम।। संपूर्ण जगत का ताप हरे। इनका पावन यह परम नाम।। इसे ब्रह्म सदा ही जपा करै। नित जाप करें शशि धारी।। इसे इंद्र कुबेर सब देव जपे। यह जगत का पालन हारी।। श्री आदिशक्ति और महालक्ष्मी। नित इनका नाम ही जपतीहै।। दो दासी है श्री राम नाम क। एक माया एकभक्ति है।। पलक झपकते ही माया। सृष्टि की रचना कर जाती।। पर प्रेम सहित जो भक्त करें। उसे माया घबराती है।। श्री राम को भक्ति प्यारी है। और माया को श्रीराम।। ...
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गंगा गौरी ,गाय गायत्री ही श्रेष्ठ । कौन है , इनसे पहले वसुंधरा पर ज्येष्ठ।। गंगा के विन जीवन की कल्पना तक करना व्यर्थ। गोरी ही अन्नपूर्णा सच्चे अर्थों का अर्थ।। गौ माता बिन धरती पर जीना नहीं आसान। बिन गायत्री ब्रह्मांड में मिलता नहीं सम्मान।। अर्थात, इस वसुंधरा पर गंगा जी, गौरी अर्थात अन्नपूर्णा गौ माता एवं भगवती गायत्री निश्चित ही श्रेष्ठ हैं इनसे पहले समूची वसुंधरा पर कौन बड़ा हो सकता है। गंगा जी के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती गौरी अर्थात अन्नपूर्णा ही जीवन दायिनी है। एवं सच्चे अर्थों में लक्ष्मी हैं। गौ माता के बिना मनुष्य में पुष्टि एवं संवर्धन की कल्पना तक नहीं की जा सकती और वेद माता गायत्री की कृपा के बिना ना ही वेदों का ज्ञान हो सकता है इस धरा पर सम्मान प्राप्त हो सकता है। Written by shrimati Pooja Agnihotri Dubey
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" जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह - ब्रह्मांडकीय व्यवस्था में सूर्य एवं चंद्र के बाद शुक्र ही सबसे अधिक चमकीला ग्रह है। शुक्र ग्रह का संबंध भोग विलास आदि से होता होता है। शुक्र ग्रह वृषभ एवं तुला राशि में स्वक्षेत्री होता है तथा मीन राशि में उच्च की स्थिति होती है व कन्या राशि में शुक्र नीच का हो जाता है। वैवाहिक प्रसंग में पुरुष की कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति देखी जाती है। तथा स्त्री की कुंडली में गुरु की स्थिति को देखा जाता है। जन्म पत्रिका में यदि शुक्र ग्रह की स्थिति मजबूत होती है तब जातक उच्च स्तरीय सांसारिक सुखों को प्राप्त करता है शुक्र के मित्र शनि एवं बुध हैं सूर्य एवं चंद्र इसके शत्रु हैं एवं गुरु सम होता है शुक्र ग्रह की कृपा से ही व्यक्ति को धन वैभव ऐश्वर्य सुंदर जीवनसाथी तथा जीवन के संपूर्ण भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। अगर किसी जातक की जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह कमजोर होता है तब उसे सांसारिक सुखों की प्राप्ति नहीं होती। कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत स्थिति में होता है तो व्यक्ति कला और मनोरंजन के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है। शुक्र ग्रह का रत्न हीरा होता है ज...
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जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह - ब्रह्मांडकीय व्यवस्था में सूर्य एवं चंद्र के बाद शुक्र ही सबसे अधिक चमकीला ग्रह है। शुक्र ग्रह का संबंध भोग विलास आदि से होता होता है। शुक्र ग्रह वृषभ एवं तुला राशि में स्वक्षेत्री होता है तथा मीन राशि में उच्च की स्थिति होती है व कन्या राशि में शुक्र नीच का हो जाता है। वैवाहिक प्रसंग में पुरुष की कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति देखी जाती है। तथा स्त्री की कुंडली में गुरु की स्थिति को देखा जाता है। जन्म पत्रिका में यदि शुक्र ग्रह की स्थिति मजबूत होती है तब जातक उच्च स्तरीय सांसारिक सुखों को प्राप्त करता है शुक्र के मित्र शनि एवं बुध हैं सूर्य एवं चंद्र इसके शत्रु हैं एवं गुरु सम होता है शुक्र ग्रह की कृपा से ही व्यक्ति को धन वैभव ऐश्वर्य सुंदर जीवनसाथी तथा जीवन के संपूर्ण भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। अगर किसी जातक की जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह कमजोर होता है तब उसे सांसारिक सुखों की प्राप्ति नहीं होती। कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत स्थिति में होता है तो व्यक्ति कला और मनोरंजन के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है। शुक्र ग्रह का रत्न हीरा होता है जिसे त...
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तेरा तुझको अर्पण किया लागे मेरा - नारी है जग का आधार। मां बन कर ममत्व का अर्पण कर देती अनंत दुलार। नारी है जग का आधार।। धन्य है नारी का जन्म एवं धन्य है कन्यादान की प्रथा। मनुस्मृति के अध्याय 3 में कहा गया है ।यत्र नार्यस्तु पूजंते रमंते तत्र देवता। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। नारी स्वयं शक्ति है एवं ब्रह्मांडकीय व्यवस्था अंतर्गत महालक्ष्मी महा सरस्वती महागौरी अपने तीनों रूपों में अवस्थित हैं शक्ति के बिना तो शिव भी शव ही है प्राचीन कहावत में बोला जाता था कन्या पराया धन होती है। निश्चित ही इसके कुछ गूढ़ार्थ होते थे। एक कन्या का पालन पोषण करके उसे अन्य को समर्पित कर देना अत्यंत ही कठिन कार्य है अतएव जिस घर में कन्या का जन्म हुआ है वे निश्चित ही परम भाग्यशाली हैं और दर्शन की दृष्टि से भी लें तो इस पृथ्वी पर जिसका भी जन्म हुआ है उसको अपनी अंतिम यात्रा पर अकेले ही निकालना पड़ता है और वह भी सब कुछ यहीं पर छोड़कर इसी प्रकार कन्या रूपी रत्न का जन्म हमें यह तो निश्चित ही सिखाता है जिस घर में कन्या है वह कन्यादान की परंपरा का पालन करते हुए बड़ी ही आसानी से उस घ...
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*कृष्णं वंदे जगतगुरुं* ----- भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माना जाता है। जिसे हम सब जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। भगवान कृष्ण को हम सब, चित चोर, माखन चोर, नंद नंदन, गोपाल,माधव, मोहन, घनश्याम, मुरलीधर, श्री कृष्णा, राधिका बल्लभ, देवकीनंदन, यशोदा नंदन, वासुदेव, केशव , बिहारी पुरुषोत्तम, द्वारकाधीश, योगेश्वर आदि नाम से जानते हैं। वे लीलाधर है उनकी लीलाओं को सूरदास,मीराबाई, रसखान, आदि कवियों ने वर्णित किया है। भगवान श्री कृष्ण को जानना अत्यंत ही कठिन है भगवती राधा जी अर्थात श्री किशोरी जी की विशेष कृपा से ही उन को जाना जा सकता है। श्रीमद् भागवत, महाभारत, श्रीभगवत गीता आदि के नियमित अध्ययन से श्री राधा कृष्ण जी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। क्योंकि इन ग्रंथो में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। भगवती राधा भगवान कृष्ण की आत्मा है अर्थात राधा ही कृष्ण एवम कृष्ण ही राधा है। कहा जाता है।।।।राधा तुम बड़भागनि, कौन तपस्या कीन।। तीन लोक तारण तरण, सो तुम्हारे अधीन।।।। अर्थात हे किशोरी आपने ऐसा कौन सा तप किया है जिससे तीनों लोकों का तरन...
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*पितृ* *पक्ष* *में* *श्राद्ध* *कर्म* *का* *महत्व*------ धर्मशास्त्रों में यह बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध कर्म से पितरों को संतोष प्राप्त होता है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यह आशीर्वाद परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य, और सुख-शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। मनुस्मृति में कहां गया है--।।श्राद्धेन पितरः तृप्ताः, तृप्ताः तु पितरः सुतान्।। अर्थात श्राद्ध से पितृ तृप्त होते हैं और तृप्त पितृ अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं पितृपक्ष में श्राद्ध करने का अत्यंत महत्व है धार्मिक मान्यता है की मृत्यु लोक से पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं इसलिए इस दौरान उनका श्राद्ध करने से उनका आशीर्वाद मिलता है तथा पितृ दोष से मुक्ति मिलती है घर में सुख शांति एवं सुख समृद्धि व संपन्नता बढ़ती है परिवार व्यवसाय एवं आजीविका में उन्नति होती है एवं कुल में वीर निरोगी शतायु और श्रेष्ठ कर्म करने वाली संतति उत्पन्न होती है एवं पूर्वजों की कृपा से जीवन में आने वाली बाधाएं समाप्त होती है। जिस तिथि को पूर्वजों का देहांत होता है उस तिथि को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जा...
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-समूचे विश्व को ज्योतिष शास्त्र आवश्यक है - जिस प्रकार दीपक अंधकार का भक्षण करता है एवं प्रकाश उत्पन्न करके संपूर्ण विषय वस्तु को दृष्टि में ला देता है ।उसी प्रकार ज्योतिष की ज्योति से काल रूपी अंधकार में प्रकाश उत्पन्न करके संपूर्ण विषय वस्तु को जाना जा सकता है। और उससे अनेकानेक लाभ प्राप्त किया जा सकते हैं। जिस प्रकार घड़ी की सुइयां एक मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति को भी समय का ज्ञान करा देती हैं ठीक उसी प्रकार ब्रह्म मंडल में स्थित ग्रह भी संपूर्ण मानव जाति को समय का सही ज्ञान कर कर सही दिशा प्रदान कराने में सहायक होते हैं। प्राचीन काल में मनुष्य काल बेला का विशेष ध्यान रखता था। एवं मुहूर्त आदि पर विशेष श्रद्धा रखता था। मानव के जन्म से लेकर विद्या अध्ययन , यज्ञोपवीत संस्कार , विवाह संस्कार , एवं मृत्यु पर्यंत , तक सभी कार्य में मुहूर्त साधना पर बल दिया जाता था। इस संसार में कर्म ही प्रधान है लेकिन सही मुहूर्त में किया गया कर्म मनुष्य को उसकी मंजिल तक पहुंचने में सहायक होता है अथवा गलत समय में किया गया कर्म निरर्थक हो जाता है। इस प्रकार ज्योतिष में मुहूर्त का ही विशिष्ट स्थान है। जैसा की...
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गण्यते संख्यायते तद्गणितम्। तत्प्रतिपादकत्वेन तत्संज्ञं शास्त्रं उच्यते। अर्थात ,जो परिकलन करता और गिनता है, वह गणित है तथा वह विज्ञान जो इसका आधार है वह भी गणित कहलाता है। वेदांग ज्योतिष में गणित का स्थान सर्वोपरि (मूधन्य) बताया गया है - यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा। तद्वद् वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्ध्नि संस्थितम् ॥ -- (वेदांग ज्योतिष - ५) (जिस प्रकार मोरों के सिर पर शिखा और नागों के सिर में मणि सर्वोच्च स्थान में होते हैं उसी प्रकार वेदांगशास्त्रों में गणित का स्थान सबसे उपर (मूर्धन्य) है। इसी प्रकार, बहुभिर्प्रलापैः किम्, त्रयलोके सचरारे। यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम्, गणितेन् बिना न हि ॥ — महावीराचार्य, गणितसारसंग्रह में (बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता) खगोल-विज्ञान के साथ तो गणित का अन्योन्य सम्बन्ध माना गया है। भास्कराचार्य का कहना है कि खगोल तथा गणित में एक दूसरे से अनभिज्ञ पुरुष उसी प्रकार महत्त्वहीन है, जैसे घृत के बिना व्यंजन, राजा के बिना राज्य होता है। 1em 0;...
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(1) ---- श्रावण मास में शिव आराधना - पवित्र श्रावण मास का अपना एक अलग ही महत्व है। बादलों से रिमझिम वर्षा के बीच मूकबद्ध एवं क्रमबद्ध वृक्षों की उपस्थिति चारों ओर हरियाली एवं सुंदर पुष्पों से सजा हुआ पृथ्वी का आंगन उस आंगन में स्थित शिवलिंग एवं शिवलिंग की समक्ष यह प्रार्थना। कदा निलिंप निर्झरी निकुंज कोटरे वसन। विमुक्त दुरमति सदा शिरस्थ मंजरी वहन।। बिलोल लोल लोचनों ललाम भाल लग्नका। शिवेति मंत्रमुच्चरन कदा सुखी भवाम अहं।। अर्थात, ।। हे सुंदर ललाट वाले भगवान चंद्रशेखर मैं दत्तचित् होकर अपने कुविचारों को त्याग कर श्री गंगा जी के तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआअपने सिर पर हाथ जोड़कर डबडबाई हुई बिहल आंखों से शिव मंत्र का उच्चारण करता हुआ कब सुखी हो जाऊंगा।। ऐसी प्रार्थना निश्चित ही समस्त संसार के लिए कल्याणकारी होगी। श्रावण मास में इस पवित्र श्लोक के साथ भगवान शिव की कृपा भी हम सब पर बरसती रहे। हमारा प्रयास कुछ ऐसा रहे की श्रावण मास के अधिष्ठाता भगवान शंकर की कृपा श्रावण में वर्षा की बूंदौं के साथ हम पर बरस पड़े। जिनकी कृपा से तारे ,सितारे नक्षत्र ,वार ,गृह एवं राशियां सभी अनुकूल हो ज...
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Vaidehi jyotish paraamarsh December 25, 2024 (श्रीमती पूजा अग्निहोत्रीदुबे)--------------।तेरा तुझको अर्पण किया लागे मेरा। - नारी है जग का आधार। मां बन कर ममत्व का अर्पण कर देती अनंत दुलार। नारी है जग का आधार।। धन्य है नारी का जन्म एवं धन्य है कन्यादान की प्रथा। मनुस्मृति के अध्याय 3 में कहा गया है ।यत्र नार्यस्तु पूजंते रमंते तत्र देवता। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। नारी स्वयं शक्ति है एवं ब्रह्मांडकीय व्यवस्था अंतर्गत महालक्ष्मी महा सरस्वती महागौरी अपने तीनों रूपों में अवस्थित हैं शक्ति के बिना तो शिव भी शव ही है प्राचीन कहावत में बोला जाता था कन्या पराया धन होती है। निश्चित ही इसके कुछ गूढ़ार्थ होते थे। एक कन्या का पालन पोषण करके उसे अन्य को समर्पित कर देना अत्यंत ही कठिन कार्य है अतएव जिस घर में कन्या का जन्म हुआ है वे निश्चित ही परम भाग्यशाली हैं और दर्शन की दृष्टि से भी लें तो इस पृथ्वी पर जिसका भी जन्म हुआ है उसको अपनी अंतिम यात्रा पर अकेले ही निकालना पड़ता है और वह भी सब कुछ यहीं पर छोड़कर इसी प्रकार कन्या रूपी रत्न का जन्म हमें यह तो निश्च...
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गण्यते संख्यायते तद्गणितम्। तत्प्रतिपादकत्वेन तत्संज्ञं शास्त्रं उच्यते। अर्थात ,जो परिकलन करता और गिनता है, वह गणित है तथा वह विज्ञान जो इसका आधार है वह भी गणित कहलाता है। वेदांग ज्योतिष में गणित का स्थान सर्वोपरि (मूधन्य) बताया गया है - यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा। तद्वद् वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्ध्नि संस्थितम् ॥ -- (वेदांग ज्योतिष - ५) (जिस प्रकार मोरों के सिर पर शिखा और नागों के सिर में मणि सर्वोच्च स्थान में होते हैं उसी प्रकार वेदांगशास्त्रों में गणित का स्थान सबसे उपर (मूर्धन्य) है। इसी प्रकार, बहुभिर्प्रलापैः किम्, त्रयलोके सचरारे। यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम्, गणितेन् बिना न हि ॥ — महावीराचार्य, गणितसारसंग्रह में (बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता) खगोल-विज्ञान के साथ तो गणित का अन्योन्य सम्बन्ध माना गया है। भास्कराचार्य का कहना है कि खगोल तथा गणित में एक दूसरे से अनभिज्ञ पुरुष उसी प्रकार महत्त्वहीन है, जैसे घृत के बिना व्यंजन, राजा के बिना राज्य तथा अच्छे वक्ता के ब...