जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह - ब्रह्मांडकीय व्यवस्था में सूर्य एवं चंद्र के बाद शुक्र ही सबसे अधिक चमकीला ग्रह है। शुक्र ग्रह का संबंध भोग विलास आदि से होता होता है। शुक्र ग्रह वृषभ एवं तुला राशि में स्वक्षेत्री होता है तथा मीन राशि में उच्च की स्थिति होती है व कन्या राशि में शुक्र नीच का हो जाता है। वैवाहिक प्रसंग में पुरुष की कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति देखी जाती है। तथा स्त्री की कुंडली में गुरु की स्थिति को देखा जाता है। जन्म पत्रिका में यदि शुक्र ग्रह की स्थिति मजबूत होती है तब जातक उच्च स्तरीय सांसारिक सुखों को प्राप्त करता है शुक्र के मित्र शनि एवं बुध हैं सूर्य एवं चंद्र इसके शत्रु हैं एवं गुरु सम होता है शुक्र ग्रह की कृपा से ही व्यक्ति को धन वैभव ऐश्वर्य सुंदर जीवनसाथी तथा जीवन के संपूर्ण भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। अगर किसी जातक की जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह कमजोर होता है तब उसे सांसारिक सुखों की प्राप्ति नहीं होती। कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत स्थिति में होता है तो व्यक्ति कला और मनोरंजन के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है। शुक्र ग्रह का रत्न हीरा होता है जिसे तर्जनी अंगुली में धारण किया जाता है। ओम शुं शुक्राय नमः इस मंत्र का जाप करने से शुक्र मजबूत होता है। शुक्र की महादशा 20 वर्ष तक चलती है यदि जन्म पत्रिका में शुक्र की स्थिति शुभ है तो शुक्र की महादशा में व्यक्ति भौतिक सुख सुविधाओं से समृद्ध होता है। एवं जन्म पत्रिका में शुक्र की स्थिति अशुभ होने पर व्यक्ति भौतिक संपदा से हीन होता है। गाय की सेवा करने से शुक्र ग्रह प्रसन्न होता है। शुक्र ग्रह की प्रसन्नता के लिए राम श्री रामचरितमानस की निम्नलिखित चौपाइयों का जाप करना अत्यंत शुभ होता है। जय जय गिरिराज किशोरी ।जय महेश मुख चंद्र चकोरी।। जय गज बदन षडानन माता । जगत जननी दामिनी थुति गाता।। नहीं तब आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाव वेद नहीं जाना ।। भव भव विभव पराभव कारिनि। विश्व विमोहिनी स्वबस बिहारिनि।। देवी पूजि पद कमल तुम्हारे। सूर्य नर मुनि सब हो ही सुखारे।।
श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे।
Doughter of shrimati POOJA Agnihotri DUBkEY(श्रीमती पूजा अग्निहोत्रीदुबे)--------------।तेरा तुझको अर्पण किया लागे मेरा। - नारी है जग का आधार। मां बन कर ममत्व का अर्पण कर देती अनंत दुलार। नारी है जग का आधार।। धन्य है नारी का जन्म एवं धन्य है कन्यादान की प्रथा। मनुस्मृति के अध्याय 3 में कहा गया है ।यत्र नार्यस्तु पूजंते रमंते तत्र देवता। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। नारी स्वयं शक्ति है एवं ब्रह्मांडकीय व्यवस्था अंतर्गत महालक्ष्मी महा सरस्वती महागौरी अपने तीनों रूपों में अवस्थित हैं शक्ति के बिना तो शिव भी शव ही है प्राचीन कहावत में बोला जाता था कन्या पराया धन होती है। निश्चित ही इसके कुछ गूढ़ार्थ होते थे। एक कन्या का पालन पोषण करके उसे अन्य को समर्पित कर देना अत्यंत कठिन कार्य है अतएव जिस घर में कन्या का जन्म हुआ है वे निश्चित ही परम भाग्यशाली हैं और दर्शन की दृष्टि से भी लें तो इस पृथ्वी पर जिसका भी जन्म हुआ है उसको अपनी अंतिम यात्रा पर अकेले ही निकालना पड़ता है और वह भी सब कुछ यहीं पर छोड़कर इसी प्रकार कन्या रूपी रत्का जन्म हमें यह तो निश्चित ही ...
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