।स्वरचित कविता श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दबे।                        ।।श्री राम अमृत।।                
श्रवण करो श्री राम नाम। संपूर्ण सुलभ होंगे सब काम।।           संपूर्ण जगत का ताप हरे। इनका पावन यह परम नाम।।          इसे ब्रह्म सदा ही जपा करै। नित जाप करें शशि धारी।।             इसे इंद्र कुबेर सब देव जपे। यह जगत का पालन हारी।।           श्री आदिशक्ति और महालक्ष्मी। नित इनका नाम ही जपतीहै।।  दो दासी है श्री राम नाम क। एक माया एकभक्ति है।।               पलक झपकते ही माया। सृष्टि की रचना कर जाती।।                पर प्रेम सहित जो भक्त करें। उसे माया घबराती है।।               श्री राम को भक्ति प्यारी है। और माया को  श्रीराम।।               संपूर्ण जगत को जो है नाचती। उसे न नचाए राम  ।।               श्री राम की भक्ति प्यारी है। जो भव से पर लगती है।।             यह आदिशक्ति श्री सीता है। जो प्रभु का धाम दिलाती है ।।       सतयुग में दत्तात्रेय रूप में। त्रेता में श्री राम रूप मैं ।।               द्वापर में श्रीश्याम रूप में। अब आएंगे कल्कि रूप में।।             जय राम राम जयराम कहो। जिससे जल्दी आएंगे प्रभु।           कलयुग को मार भाग करके। सतयुग फिर से लायेंगे प्रभु।।       ।।स्वरचित कविता श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे।।

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