गंगा गौरी ,गाय गायत्री ही श्रेष्ठ । कौन है , इनसे पहले वसुंधरा पर ज्येष्ठ।। गंगा के विन जीवन की कल्पना तक करना व्यर्थ। गोरी ही अन्नपूर्णा सच्चे अर्थों का अर्थ।। गौ माता बिन धरती पर जीना नहीं आसान। बिन गायत्री ब्रह्मांड में मिलता नहीं सम्मान।। अर्थात, इस वसुंधरा पर गंगा जी, गौरी अर्थात अन्नपूर्णा गौ माता एवं भगवती गायत्री निश्चित ही श्रेष्ठ हैं इनसे पहले समूची वसुंधरा पर कौन बड़ा हो सकता है। गंगा जी के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती गौरी अर्थात अन्नपूर्णा ही जीवन दायिनी है। एवं सच्चे अर्थों में लक्ष्मी हैं। गौ माता के बिना मनुष्य में पुष्टि एवं संवर्धन की कल्पना तक नहीं की जा सकती और वेद माता गायत्री की कृपा के बिना ना
ही वेदों का ज्ञान हो सकता है न ही इस धरा पर सम्मान प्राप्त हो सकता है। Written by shrimati Pooja Agnihotri Dubey। गण्यते संख्यायते तद्गणितम्। तत्प्रतिपादकत्वेन तत्संज्ञं शास्त्रं उच्यते।
इसी प्रकार,
(जिस प्रकार मोरों के सिर पर शिखा और नागों के सिर में मणि सर्वोच्च स्थान में होते हैं उसी प्रकार वेदांगशास्त्रों में ग
(बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता)
श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे
श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे
*जन्मपत्रिका में शनि ग्रह* *की स्थिति एवं प्रभाव* - जब भी जन्म कुंडली की बात होती है तब जन मानस में सर्वाधिक चिंता शनि ग्रह के कारण होती है। शनि न्याय के देवता हैं अतः जिनकी पत्रिका में शनि शुभ स्थिति में होते हैं उन्हें बहुत अच्छा फल प्रदान करते हैं तथा जिनकी पत्रिका में शनि अशुभ स्थिति में होते हैं उन्हें दुख और कष्ट की स्थिति निर्मित करते हैं सदैव शुभ कर्म करते रहने से शनि देव अत्यंत प्रसन्न रहते हैं किंतु कभी-कभी जीवन में शुभ कर्म करने पर भी जातक अथवा जातिका को दुख भोगना पड़ता है इसका कारण शनि का जन्मपत्रिका में अशुभ स्थिति में निर्मित होना होता है। पूर्व कर्मों के दुष्प्रभाव के कारण जन्म पत्रिका में शनि अशुभ स्थिति में निर्मित हो जाते है और अपनी दशा अंतर्दशा में अशुभ फल प्रदान करते है। निरंतर शुभ कर्म करते रहने से शनि का दुष्प्रभाव कम हो जाता है। ज्योतिष में शनि देव सर्वाधिक धीमी गति से चलते हैं इस प्रकार वह एक राशि में ढाई वर्ष तक रहते हैं।जन्म कुंडली में शनि मकर एवं कुंभ राशि के स्वामी होते है। तथा तुला राशि में उच्च की स्थिति में एवं मेष राशि में नीच की स्थिति में होते है। कुंडली के द्वादश भाव में उच्च के शनि विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करते हैं इसी प्रकार नीच के शनि विशेष रूप से दुष्प्रभाव उत्पन्न करते हैं। मकर एवं कुंभ राशि में शनि की स्वच्छेत्री स्थिति निर्मित होती है इसके प्रभाव से जन्म कुंडली के द्वादश भाव में अनुकूलता प्राप्त होती हैं। जन्म कुंडली के अष्टम भाव में शनि की उपस्थिति अथवा शनि की दृष्टि दीर्घायु प्रदान करती हैं इसी प्रकार से जन्म कुंडली के सप्तम भाव में शनि की उपस्थिति अथवा शनि की दृष्टि विवाह में विलंब उत्पन्न करती हैं इसी प्रकार से जन्म कुंडली के द्वादश भावों में अलग-अलग फल प्राप्त होता है। शनि ग्रह की शुभता के लिए मजदूर अथवा साफ सफाई आदि करने वाले कर्मचारीयों का विशेष ध्यान रखना चाहिए जरूरतमंद लोगों के लिए अथवा योग्य ब्राह्मण के लिए काले कंबल का दान ,उड़द का दान , काली तिल का दान , सरसों के तेल का दान, शुभ फल प्रदान करता है तथा पीपल के वृक्ष में जल अर्पित करने से वा पीपल के वृक्ष के समीप दीपक लगाने से भी शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती हैं शनि सूर्य देव के पुत्र हैं शनि की माता छाया देवी हैं शनि यमराज के बड़े भाई हैं उन्हें ब्रह्म मंडल में भ्रत्य का पद प्राप्त है। वे कर्म के देवता हैं अतः कुंडली के दशम भाव में सदैव कारक होते हैं कुंडली का दशम भाव कर्मेश होता है अतः काल पुरुष की पत्रिका के अनुसार शनि दशम भाव में कारक होते हैं क्योंकि वे न्याय के भी के भी देवता हैं अतः निरंतर शुभ कर्म करते रहने से शनि देव की प्रसन्नता और उनकी कृपा प्राप्त होती है नासिक जिले में सिंगनापुर नामक स्थान पर शनि देव की प्रतिमा के दर्शन करने से भी शनि के अशुभ प्रभाव में निश्चित रूप से कमी होती है तथा निम्नलिखित श्लोक के नियमित पाठ से भी शनि देव प्रसन्न होते हैं। ।।नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं।। ।। छाया मार्तंड संभूतं तं नमामि शनिश्चरं।। ।।श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे।। ।।मोबाइल नंबर--7697234867।।महालक्ष्मी योग - किसी भी जातक की जन्मपत्रिका मे चंद्र एवं मंगल की युति महालक्ष्मी योग का निर्माण करती है जिस किसी जातक या जातिका की कुंडली मे यह योग उपस्थित होता है उसे जीवन मे कभी भी धन का अभाव नहीं होता जब जन्मकुंडली के किसी भी
अर्थात ,जो परिकलन करता और गिनता है, वह गणित है तथा वह विज्ञान जो इसका आधार है वह भी गणित कहलाता है।
वेदांग ज्योतिष में गणित का स्थान सर्वोपरि (मूधन्य) बताया गया है -
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद् वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्ध्नि संस्थितम् ॥ -- (वेदांग ज्योतिष - ५)
(जिस प्रकार मोरों के सिर पर शिखा और नागों के सिर में मणि सर्वोच्च स्थान में होते हैं उसी प्रकार वेदांगशास्त्रों में गणित का स्थान सबसे उपर (मूर्धन्य) है।
इसी प्रकार,
गण्यते संख्यायते तद्गणितम्। तत्प्रतिपादकत्वेन तत्संज्ञं शास्त्रं उच्यते।
अर्थात ,जो परिकलन करता और गिनता है, वह गणित है तथा वह विज्ञान जो इसका आधार है वह भी गणित कहलाता है।
वेदांग ज्योतिष में गणित का स्थान सर्वोपरि (मूधन्य) बताया गया है -
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वद् वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्ध्नि संस्थितम् ॥ -- (वेदांग ज्योतिष - ५)
(जिस प्रकार मोरों के सिर पर शिखा और नागों के सिर में मणि सर्वोच्च स्थान में होते हैं उसी प्रकार वेदांगशास्त्रों में ग
णित का स्थान सबसे उपर (मूर्धन्य) है।
इसी प्रकार,
बहुभिर्प्रलापैः किम्, त्रयलोके सचरारे।
यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम्, गणितेन् बिना न हि ॥ — महावीराचार्य, गणितसारसंग्रह में
(बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता)
खगोल-विज्ञान के साथ तो गणित का अन्योन्य सम्बन्ध माना गया है। भास्कराचार्य का कहना है कि खगोल तथा गणित में एक दूसरे से अनभिज्ञ पुरुष उसी प्रकार महत्त्वहीन है, जैसे घृत के बिना व्यंजन, राजा के बिना राज्य तथा अच्छे वक्ता के बिना सभा होती है
बहुभिर्प्रलापैः किम्, त्रयलोके सचरारे।
यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम्, गणितेन् बिना न हि ॥ — महावीराचार्य, गणितसारसंग्रह में
(बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता)
खगोल-विज्ञान के साथ तो गणित का अन्योन्य सम्बन्ध माना गया है। भास्कराचार्य का कहना है कि खगोल तथा गणित में एक दूसरे से अनभिज्ञ पुरुष उसी प्रकार महत्त्वहीन है, जैसे घृत के बिना व्यंजन, राजा के बिना राज्य तथा अच्छे वक्ता के बिना सभा होती है । यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा ।
तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥
जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे ऊपर है। *पितृ* *पक्ष* *में* *श्राद्ध* *कर्म* *का* *महत्व*------ धर्मशास्त्रों में यह बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध कर्म से पितरों को संतोष प्राप्त होता है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यह आशीर्वाद परिवार की समृद्धि, स्वास्थ्य, और सुख-शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। मनुस्मृति में कहां गया है--।।श्राद्धेन पितरः तृप्ताः, तृप्ताः तु पितरः सुतान्।। अर्थात श्राद्ध से पितृ तृप्त होते हैं और तृप्त पितृ अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं पितृपक्ष में श्राद्ध करने का अत्यंत महत्व है धार्मिक मान्यता है की मृत्यु लोक से पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं इसलिए इस दौरान उनका श्राद्ध करने से उनका आशीर्वाद मिलता है तथा पितृ दोष से मुक्ति मिलती है घर में सुख शांति एवं सुख समृद्धि व संपन्नता बढ़ती है परिवार व्यवसाय एवं आजीविका में उन्नति होती है एवं कुल में वीर निरोगी शतायु और श्रेष्ठ कर्म करने वाली संतति उत्पन्न होती है एवं पूर्वजों की कृपा से जीवन में आने वाली बाधाएं समाप्त होती है। जिस तिथि को पूर्वजों का देहांत होता है उस तिथि को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में पितरों की निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ के अनुरूप शास्त्रोक्त विधि से श्रद्धा पूर्वक दान करता है और श्राद्ध कर्म करता है उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं जिस किसी को अपने पूर्वजों की तिथि का ज्ञान नहीं होता वह सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन एवं दान कर सकते हैं जो सर्वाधिक कल्याणकारी होता है पितृ पक्ष को सोलह श्राद्ध महालय पक्ष अथवा अपार पक्ष के नाम से भी जाना जाता है पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है । समूचे विश्व को ज्योतिष शास्त्र आवश्यक है ?
https://agroindianews.com/समूचे-विश्व-को-ज्योतिष-शा/-समूचे विश्व को ज्योतिष शास्त्र आवश्यक है - जिस प्रकार दीपक अंधकार का भक्षण करता है एवं प्रकाश उत्पन्न करके संपूर्ण विषय वस्तु को दृष्टि में ला देता है ।उसी प्रकार ज्योतिष की ज्योति से काल रूपी अंधकार में प्रकाश उत्पन्न करके संपूर्ण विषय वस्तु को जाना जा सकता है। और उससे अनेकानेक लाभ प्राप्त किया जा सकते हैं। जिस प्रकार घड़ी की सुइयां एक मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति को भी समय का ज्ञान करा देती हैं ठीक उसी प्रकार ब्रह्म मंडल में स्थित ग्रह भी संपूर्ण मानव जाति को समय का सही ज्ञान कर कर सही दिशा प्रदान कराने में सहायक होते हैं। प्राचीन काल में मनुष्य काल बेला का विशेष ध्यान रखता था। एवं मुहूर्त आदि पर विशेष श्रद्धा रखता था। मानव के जन्म से लेकर विद्या अध्ययन , यज्ञोपवीत संस्कार , विवाह संस्कार , एवं मृत्यु पर्यंत , तक सभी कार्य में मुहूर्त साधना पर बल दिया जाता था। इस संसार में कर्म ही प्रधान है लेकिन सही मुहूर्त में किया गया कर्म मनुष्य को उसकी मंजिल तक पहुंचने में सहायक होता है अथवा गलत समय में किया गया कर्म निरर्थक हो जाता है। इस प्रकार ज्योतिष में मुहूर्त का ही विशिष्ट स्थान है। जैसा की रामचरितमानस मे कहां गया है । समय चूक पुनि का पछताने । का वर्षा जब कृषि सुखाने ।। श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे।।श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे
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श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे
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*जन्मपत्रिका में शनि ग्रह* *की स्थिति एवं प्रभाव* - जब भी जन्म कुंडली की बात होती है तब जन मानस में सर्वाधिक चिंता शनि ग्रह के कारण होती है। शनि न्याय के देवता हैं अतः जिनकी पत्रिका में शनि शुभ स्थिति में होते हैं उन्हें बहुत अच्छा फल प्रदान करते हैं तथा जिनकी पत्रिका में शनि अशुभ स्थिति में होते हैं उन्हें दुख और कष्ट की स्थिति निर्मित करते हैं सदैव शुभ कर्म करते रहने से शनि देव अत्यंत प्रसन्न रहते हैं किंतु कभी-कभी जीवन में शुभ कर्म करने पर भी जातक अथवा जातिका को दुख भोगना पड़ता है इसका कारण शनि का जन्मपत्रिका में अशुभ स्थिति में निर्मित होना होता है। पूर्व कर्मों के दुष्प्रभाव के कारण जन्म पत्रिका में शनि अशुभ स्थिति में निर्मित हो जाते है और अपनी दशा अंतर्दशा में अशुभ फल प्रदान करते है। निरंतर शुभ कर्म करते रहने से शनि का दुष्प्रभाव कम हो जाता है। ज्योतिष में शनि देव सर्वाधिक धीमी गति से चलते हैं इस प्रकार वह एक राशि में ढाई वर्ष तक रहते हैं।जन्म कुंडली में शनि मकर एवं कुंभ राशि के स्वामी होते है। तथा तुला राशि में उच्च की स्थिति में एवं मेष राशि में नीच की स्थिति में होते है। कुंडली के द्वादश भाव में उच्च के शनि विशिष्ट प्रभाव उत्पन्न करते हैं इसी प्रकार नीच के शनि विशेष रूप से दुष्प्रभाव उत्पन्न करते हैं। मकर एवं कुंभ राशि में शनि की स्वच्छेत्री स्थिति निर्मित होती है इसके प्रभाव से जन्म कुंडली के द्वादश भाव में अनुकूलता प्राप्त होती हैं। जन्म कुंडली के अष्टम भाव में शनि की उपस्थिति अथवा शनि की दृष्टि दीर्घायु प्रदान करती हैं इसी प्रकार से जन्म कुंडली के सप्तम भाव में शनि की उपस्थिति अथवा शनि की दृष्टि विवाह में विलंब उत्पन्न करती हैं इसी प्रकार से जन्म कुंडली के द्वादश भावों में अलग-अलग फल प्राप्त होता है। शनि ग्रह की शुभता के लिए मजदूर अथवा साफ सफाई आदि करने वाले कर्मचारीयों का विशेष ध्यान रखना चाहिए जरूरतमंद लोगों के लिए अथवा योग्य ब्राह्मण के लिए काले कंबल का दान ,उड़द का दान , काली तिल का दान , सरसों के तेल का दान, शुभ फल प्रदान करता है तथा पीपल के वृक्ष में जल अर्पित करने से वा पीपल के वृक्ष के समीप दीपक लगाने से भी शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती हैं शनि सूर्य देव के पुत्र हैं शनि की माता छाया देवी हैं शनि यमराज के बड़े भाई हैं उन्हें ब्रह्म मंडल में भ्रत्य का पद प्राप्त है। वे कर्म के देवता हैं अतः कुंडली के दशम भाव में सदैव कारक होते हैं कुंडली का दशम भाव कर्मेश होता है अतः काल पुरुष की पत्रिका के अनुसार शनि दशम भाव में कारक होते हैं क्योंकि वे न्याय के भी के भी देवता हैं अतः निरंतर शुभ कर्म करते रहने से शनि देव की प्रसन्नता और उनकी कृपा प्राप्त होती है नासिक जिले में सिंगनापुर नामक स्थान पर शनि देव की प्रतिमा के दर्शन करने से भी शनि के अशुभ प्रभाव में निश्चित रूप से कमी होती है तथा निम्नलिखित श्लोक के नियमित पाठ से भी शनि देव प्रसन्न होते हैं। ।।नीलांजनं समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं।। ।। छाया मार्तंड संभूतं तं नमामि शनिश्चरं।। ।।श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे।। ।।मोबाइल नंबर--7697234867।।महालक्ष्मी योग - किसी भी जातक की जन्मपत्रिका मे चंद्र एवं मंगल की युति महालक्ष्मी योग का निर्माण करती है जिस किसी जातक या जातिका की कुंडली मे यह योग उपस्थित होता है उसे जीवन मे कभी भी धन का अभाव नहीं होता जब जन्मकुंडली के किसी भी
Vaidehi jyotish paraamarsh
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जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह - ब्रह्मांडकीय व्यवस्था में सूर्य एवं चंद्र के बाद शुक्र ही सबसे अधिक चमकीला ग्रह है। शुक्र ग्रह का संबंध भोग विलास आदि से होता होता है। शुक्र ग्रह वृषभ एवं तुला राशि में स्वक्षेत्री होता है तथा मीन राशि में उच्च की स्थिति होती है व कन्या राशि में शुक्र नीच का हो जाता है। वैवाहिक प्रसंग में पुरुष की कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति देखी जाती है। तथा स्त्री की कुंडली में गुरु की स्थिति को देखा जाता है। जन्म पत्रिका में यदि शुक्र ग्रह की स्थिति मजबूत होती है तब जातक उच्च स्तरीय सांसारिक सुखों को प्राप्त करता है शुक्र के मित्र शनि एवं बुध हैं सूर्य एवं चंद्र इसके शत्रु हैं एवं गुरु सम होता है शुक्र ग्रह की कृपा से ही व्यक्ति को धन वैभव ऐश्वर्य सुंदर जीवनसाथी तथा जीवन के संपूर्ण भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। अगर किसी जातक की जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह कमजोर होता है तब उसे सांसारिक सुखों की प्राप्ति नहीं होती। कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत स्थिति में होता है तो व्यक्ति कला और मनोरंजन के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है। शुक्र ग्रह का रत्न हीरा होता है जिसे तर्जनी अंगुली में धारण किया जाता है। ओम शुं शुक्राय नमः इस मंत्र का जाप करने से शुक्र मजबूत होता है। शुक्र की महादशा 20 वर्ष तक चलती है यदि जन्म पत्रिका में शुक्र की स्थिति शुभ है तो शुक्र की महादशा में व्यक्ति भौतिक सुख सुविधाओं से समृद्ध होता है। एवं जन्म पत्रिका में शुक्र की स्थिति अशुभ होने पर व्यक्ति भौतिक संपदा से हीन होता है। गाय की सेवा करने से शुक्र ग्रह प्रसन्न होता है। शुक्र ग्रह की प्रसन्नता के लिए राम श्री रामचरितमानस की निम्नलिखित चौपाइयों का जाप करना अत्यंत शुभ होता है। जय जय गिरिराज किशोरी ।जय महेश मुख चंद्र चकोरी।। जय गज बदन षडानन माता । जगत जननी दामिनी थुति गाता।। नहीं तब आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाव वेद नहीं जाना ।। भव भव विभव पराभव कारिनि। विश्व विमोहिनी स्वबस बिहारिनि।। देवी पूजि पद कमल तुम्हारे। सूर्य नर मुनि सब हो ही सुखारे।।
श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे
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