*कृष्णं वंदे जगतगुरुं* ----- भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माना जाता है। जिसे हम सब जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। भगवान कृष्ण को हम सब, चित चोर, माखन चोर, नंद नंदन, गोपाल,माधव, मोहन, घनश्याम, मुरलीधर, श्री कृष्णा, राधिका बल्लभ, देवकीनंदन, यशोदा नंदन, वासुदेव, केशव , बिहारी पुरुषोत्तम, द्वारकाधीश, योगेश्वर आदि नाम से जानते हैं। वे लीलाधर है उनकी लीलाओं को सूरदास,मीराबाई, रसखान, आदि कवियों ने वर्णित किया है। भगवान श्री कृष्ण को जानना अत्यंत ही कठिन है भगवती राधा जी अर्थात श्री किशोरी जी की विशेष कृपा से ही उन को जाना जा सकता है। श्रीमद् भागवत, महाभारत, श्रीभगवत गीता आदि के नियमित अध्ययन से श्री राधा कृष्ण जी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। क्योंकि इन ग्रंथो में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का विशेष रूप से वर्णन किया गया है। भगवती राधा भगवान कृष्ण की आत्मा है अर्थात राधा ही कृष्ण एवम कृष्ण ही राधा है। कहा जाता है।।।।राधा तुम बड़भागनि, कौन तपस्या कीन।। तीन लोक तारण तरण, सो तुम्हारे अधीन।।।। अर्थात हे किशोरी आपने ऐसा कौन सा तप किया है जिससे तीनों लोकों का तरन तारन करने वाले श्री कृष्ण सदैव आपके अधीन रहते हैं। भगवान कृष्ण की 8 पट रानियां माता रूकमणि, जामवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रवृंदा, नाग्नजीती, भद्रा एवं लक्ष्मणा है। उनकी 16 000 रनिया भी है जिन्हें वेद की ऋचाएं कहा जाता है । भगवान कृष्ण पृथ्वी पर अति विशिष्ट कार्यों को संपादित करने के लिए अवतरित हुए थे। एवं उन्होंने श्री किशोरी जी की अत्यंत कृपा से सारे कार्यों को संपादित किया। श्रीमद् भागवत के प्रथम श्लोक में कहा गया है।। सच्चिदानंद रुपाय विश्व उत्पत्तियादि हेतवे ।। तापत्राय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नमः।। अर्थात सत्य चित् और आनंद को प्रदान करने वाले भगवान श्री कृष्ण जो जगत की उत्पत्ति,स्थिति एवं प्रलय के हेतु है तथा दैहिक दैविक एवं भौतिक तीनों प्रकार के तापों का नाश करने वाले हैं उन्हें हम सब नमस्कार करते हैं ।। श्रीमद् भगवत गीता में श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान समूचे ब्रह्मांड की प्रत्येक जीवात्मा के लिए अति कल्याणकारी है। इसीलिए कहा गया है। वासुदेव सुतम देवम, कंसचाणूर मर्दनम।। देवकी परमानंदम कृष्णम वंदे जगतगुरुं।।
Doughter of shrimati POOJA Agnihotri DUBkEY(श्रीमती पूजा अग्निहोत्रीदुबे)--------------।तेरा तुझको अर्पण किया लागे मेरा। - नारी है जग का आधार। मां बन कर ममत्व का अर्पण कर देती अनंत दुलार। नारी है जग का आधार।। धन्य है नारी का जन्म एवं धन्य है कन्यादान की प्रथा। मनुस्मृति के अध्याय 3 में कहा गया है ।यत्र नार्यस्तु पूजंते रमंते तत्र देवता। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। नारी स्वयं शक्ति है एवं ब्रह्मांडकीय व्यवस्था अंतर्गत महालक्ष्मी महा सरस्वती महागौरी अपने तीनों रूपों में अवस्थित हैं शक्ति के बिना तो शिव भी शव ही है प्राचीन कहावत में बोला जाता था कन्या पराया धन होती है। निश्चित ही इसके कुछ गूढ़ार्थ होते थे। एक कन्या का पालन पोषण करके उसे अन्य को समर्पित कर देना अत्यंत कठिन कार्य है अतएव जिस घर में कन्या का जन्म हुआ है वे निश्चित ही परम भाग्यशाली हैं और दर्शन की दृष्टि से भी लें तो इस पृथ्वी पर जिसका भी जन्म हुआ है उसको अपनी अंतिम यात्रा पर अकेले ही निकालना पड़ता है और वह भी सब कुछ यहीं पर छोड़कर इसी प्रकार कन्या रूपी रत्का जन्म हमें यह तो निश्चित ही ...
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