भारत एक प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य है। यहां पर विभिन्न प्रकार की संस्कृति भाषा शैली वेशभूषा एवं अनेक प्रकार के धर्म के लोग एक साथ निवास करते हैं ।इस प्रकार अनेकता में एकता भारतवर्ष की सबसे बड़ी विशेषता है । भारत का प्राचीन नाम आर्यावर्त है इसे हिंदुस्तान एवं इंडिया भी कहते हैं। आर्यावर्त की उत्तर दिशा में स्थित हिमालय इसके मस्तक पर मुकुट की भांति शोभायमन है एवं दक्षिण दिशा में स्थित विशालकाय समंदर निरंतर इसके चरणों को पखारता है अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त आर्यावर्त के विशाल अभ्यारण में विभिन्न प्रकार की प्रजाति के पशु पक्षी निरंतर ही इसके आकर्षण मे वृद्धि करते रहते हैं। यहां के वन प्रदेशों में विशालकाय वृक्षों की मूकबद्ध एवं क्रमबद्ध पंक्तियां किसी साधनारत साधु की साधना का स्मरण कराती हुई प्रतीत होती हैं चंद्रिका चर्चित यामिनी की इस स्तब्ध निशा में समूचे आर्यावर्त का सौंदर्य देवताओं को भी यहां आने के लिए लालायित एवं विवश कर देता है ।समूची पृथ्वी पर आर्यावर्त एक महान आध्यात्मिक भूखंड है इसकी पूर्व दिशा में स्थित जगन्नाथ पुरी पश्चिम दिशा में स्थित द्वारिका पुरी दक्षिण दिशा में स्थित रामेश्वरम उत्तर दिशा में स्थित केदारनाथ बद्रीनाथ ऋषिकेश गंगोत्री एवं यमुनोत्री से उत्सर्जित ऊर्जा आर्यावर्त को परम आध्यात्मिकता से परिपूर्ण कर देती है । यहां से उच्चारित मंत्रों एवं श्लोकों की ध्वनि से आर्यावर्त का वातावरण महान अलौकिकता से परिपूर्ण हो जाता है । एवं देवलोक के वातावरण को भी संकुचित करता है । यहां कैलाश पर्वत से निकली हुई गंगा यमुना सरस्वती कृष्ण कावेरी मंदाकिनी गोदावरी शिप्रा नर्मदा आदि कल कल ध्वनि करती हुई तीव्र वेग से विभिन्न अभ्यारणों को पर करती हुई बंगाल की खाड़ी में समा जाती हैं। सुंदर सरोवरों एवं नदियों का समूह विभिन्न अभ्यारणों एवं अरंड प्रदेशों को प्रबल आकर्षण से समृद्ध कर देता है। प्रायः आर्यावर्त के अलौकिक सौंदर्य को देवता भी अपनी मधुर वाणी में गायन करते नहीं थकते। इस प्रकार हमारा आर्यावर्त में जन्म लेना तथा यहां पालित एवं पोषित होना एवं विचरण करना तप करना और अंत में समाधि को प्राप्त कर लेना हमारे आर्यावर्त में ही संभव है।
Doughter of shrimati POOJA Agnihotri DUBkEY(श्रीमती पूजा अग्निहोत्रीदुबे)--------------।तेरा तुझको अर्पण किया लागे मेरा। - नारी है जग का आधार। मां बन कर ममत्व का अर्पण कर देती अनंत दुलार। नारी है जग का आधार।। धन्य है नारी का जन्म एवं धन्य है कन्यादान की प्रथा। मनुस्मृति के अध्याय 3 में कहा गया है ।यत्र नार्यस्तु पूजंते रमंते तत्र देवता। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। नारी स्वयं शक्ति है एवं ब्रह्मांडकीय व्यवस्था अंतर्गत महालक्ष्मी महा सरस्वती महागौरी अपने तीनों रूपों में अवस्थित हैं शक्ति के बिना तो शिव भी शव ही है प्राचीन कहावत में बोला जाता था कन्या पराया धन होती है। निश्चित ही इसके कुछ गूढ़ार्थ होते थे। एक कन्या का पालन पोषण करके उसे अन्य को समर्पित कर देना अत्यंत कठिन कार्य है अतएव जिस घर में कन्या का जन्म हुआ है वे निश्चित ही परम भाग्यशाली हैं और दर्शन की दृष्टि से भी लें तो इस पृथ्वी पर जिसका भी जन्म हुआ है उसको अपनी अंतिम यात्रा पर अकेले ही निकालना पड़ता है और वह भी सब कुछ यहीं पर छोड़कर इसी प्रकार कन्या रूपी रत्का जन्म हमें यह तो निश्चित ही ...
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