वृक्षारोपण। मत करो यह जुल्म प्रकृति पर। मत काटो वृक्षों को। अरे आग से छेड़छाड़ अच्छी नहीं जल जाओगे झुलस जाओगे। और प्रकृति के इस भीषण तांडव को तुम सहन नहीं कर पाओगे। ना ही कोई मौसम होगा ना शीत, ना वर्षा बस गर्मी में ही झुलस कर मर जाओगे । ना रोका अगर प्रदूषण को तो प्रकृति को संतुलित नहीं कर पाओगे। संभल जाओ नियंत्रित करो प्रदूषण को और वृक्षारोपण भी क्योंकि थोड़े असंतुलन को संतुलन में लाना कोई मुश्किल काम नहीं। पर असंतुलन के बृहद,रूप को संतुलित कर पाना आसान नहीं। अरे जानवरों में तो बुद्धि नहीं होती तुम तो मनुष्य हो बुद्धि बल का प्रयोग करो। पर्यावरण को स्वच्छ बनाओ और वृक्षारोपण करो । क्योंकि वृक्षारोपण ही संजीवनी है पर्यावरण के लिए। और प्रदूषण को हटाना ही होगा एक स्वस्थ जीवन के लिए। तो उठो कमर कस लो कसम खा लो एक एक वृक्ष लगे लगाने की। पर्यावरण को प्रदूषण से निजात दिलाने की। अरे बूंद बूंद करके ही घड़ा भर जाता है यह कहावत है पुराने जमाने की । श्रीमती पूजाअग्निहोत्री दुबे।

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