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Showing posts from December, 2024
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 https://agroindianews.com/what-is-mahalakshmi-yoga-in-astrology/
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गंगा गौरी ,गाय गायत्री ही श्रेष्ठ । कौन है , इनसे पहले वसुंधरा पर ज्येष्ठ।। गंगा के विन जीवन की कल्पना तक करना व्यर्थ। गोरी ही अन्नपूर्णा सच्चे अर्थों का अर्थ।। गौ माता बिन धरती पर जीना नहीं आसान। बिन गायत्री ब्रह्मांड में मिलता नहीं सम्मान।। अर्थात, इस वसुंधरा पर गंगा जी, गौरी अर्थात अन्नपूर्णा गौ माता एवं भगवती गायत्री निश्चित ही श्रेष्ठ हैं इनसे पहले समूची वसुंधरा पर कौन बड़ा हो सकता है। गंगा जी के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती गौरी अर्थात अन्नपूर्णा ही जीवन दायिनी है। एवं सच्चे अर्थों में लक्ष्मी हैं। गौ माता के बिना मनुष्य में पुष्टि एवं संवर्धन की कल्पना तक नहीं की जा सकती और वेद माता गायत्री की कृपा के बिना ना ही वेदों का ज्ञान हो सकता है न ही इस धरा पर सम्मान प्राप्त हो सकता है। Written by shrimati Pooja Agnihotri Dubey। गण्यते संख्याय...
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जन्म कुंडली में मांगलिक योग - जब भी जन्म कुंडली की बात होती है । तब सर्वाधिक चर्चा मांगलिक योग की होती है। जन्म पत्रिका में मंगल दोष का नाम सुनते ही लोग चिंतित हो जाते हैं । परंतु यह एक प्रकार का योग है। मांगलिक योग होना हमेशा चिंता का विषय नहीं होता। क्योंकि मांगलिक योग की दो प्रकार की स्थितियां होती हैं। एक शुभ मांगलिक योग होता है एवं दूसरा अशुभ मांगलिक योग होता है। सर्वप्रथम जानते हैं मांगलिक योग बनता कैसे हैं। जब जन्म पत्रिका के प्रथम चतुर्थ सप्तम अष्टम एवं द्वादश भाव में मंगल ग्रह विद्यमान होता है तब पत्रिका मांगलिक योग वाली बन जाती है। शुभ मांगलिक योग में जातक आकर्षक व्यक्तित्व का धनी होता है। धन संपदा से युक्त होता है। साहसी एवं पराक्रमी होता है। माता स्थान की उन्नति भी करता है भूमि भवन एवं वहां से संपन्न होता है। गणित विषय के क्षेत्र में उन्नति पाता है। तीक्ष्ण बुद्धि का स्वामी होता है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। उच्च पदासीन जीवनसाथी प्राप्त करता है। आयु क्षेत्र में बल प्राप्त करता है। भाग्यशाली एवं प्रशासनिक सेवा को प्राप्त करता है। उच्च कोटि की आय एवं साहस पूर्ण यात...
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जन्म पत्रिका में सूर्य एवं चंद्र-वेद कहता है। - चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत. श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत। नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत.  पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकान् अकल्पयन्।। सूर्य आत्मा का कारक है एवं चंद्रमा मन का कारक है इस प्रकार जन्म पत्रिका में सूर्य लग्न एवं चंद्र लग्न दोनों ही महत्वपूर्ण है। जन्म पत्रिका में सूर्य लग्न से आत्मा की स्थिति एवं चंद्र लग्न से मन की स्थिति ज्ञात होती है। एवं जन्म लग्न से देह की स्थिति ज्ञात होती है। जन्म पत्रिका में सूर्य सिंह राशि में स्वच्छेत्री मेष राशि में उच्च का एवं तुला राशि में नीचे का होता है। इसी प्रकार चंद्रमा कर्क राशि में स्वच्छेत्री वृषभ राशि में उच्च का एवं वृश्चिक राशि में नीचे का होता है तथा नक्षत्र में चंद्रमा की स्थिति रोहिणी नक्षत्र में अत्यंत शुभ होती है। जितने भी दूध वाले वृक्ष हैं सब की उत्पत्ति चंद्र के कारण है चंद्रमा बीज ,औषधि, जल ,मोती, दूध , अश्व एवं मन पर शासन करता है किसी भी मनुष्य के मन की शांति व अशांति का कारण चंद्रमा ही होता है। इसी प्रकार जन्म पत्रिका में कि...
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Shrimati Pooja Agnihotri Dubey   जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह - ब्रह्मांडकीय व्यवस्था में सूर्य एवं चंद्र के बाद शुक्र ही सबसे अधिक चमकीला ग्रह है। शुक्र ग्रह का संबंध भोग विलास आदि से होता होता है। शुक्र ग्रह वृषभ एवं तुला राशि में स्वक्षेत्री होता है तथा मीन राशि में उच्च की स्थिति होती है व कन्या राशि में शुक्र नीच का हो जाता है। वैवाहिक प्रसंग में पुरुष की कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति देखी जाती है। तथा स्त्री की कुंडली में गुरु की स्थिति को देखा जाता है। जन्म पत्रिका में यदि शुक्र ग्रह की स्थिति मजबूत होती है तब जातक उच्च स्तरीय सांसारिक सुखों को प्राप्त करता है शुक्र के मित्र शनि एवं बुध हैं सूर्य एवं चंद्र इसके शत्रु हैं एवं गुरु सम होता है शुक्र ग्रह की कृपा से ही व्यक्ति को धन वैभव ऐश्वर्य सुंदर जीवनसाथी तथा जीवन के संपूर्ण भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। अगर किसी जातक की जन्म पत्रिका में शुक्र ग्रह कमजोर होता है तब उसे सांसारिक सुखों की प्राप्ति नहीं होती। कुंडली में शुक्र ग्रह मजबूत स्थिति में होता है तो व्यक्ति कला और मनोरंजन के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है...
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Doughter of shrimati POOJA Agnihotri DUBkEY(श्रीमती पूजा अग्निहोत्रीदुबे)--------------।तेरा तुझको अर्पण किया लागे मेरा।  - नारी है जग का आधार। मां बन कर ममत्व का अर्पण कर देती अनंत दुलार। नारी है जग का आधार।। धन्य है नारी का जन्म एवं धन्य है कन्यादान की प्रथा। मनुस्मृति के अध्याय 3 में कहा गया है ।यत्र नार्यस्तु पूजंते रमंते तत्र देवता। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। नारी स्वयं शक्ति है एवं ब्रह्मांडकीय व्यवस्था अंतर्गत महालक्ष्मी महा सरस्वती महागौरी अपने तीनों रूपों में अवस्थित हैं शक्ति के बिना तो शिव भी शव ही है प्राचीन कहावत में बोला जाता था कन्या पराया धन होती है। निश्चित ही इसके कुछ गूढ़ार्थ होते थे। एक कन्या का पालन पोषण करके उसे अन्य को समर्पित कर देना अत्यंत कठिन कार्य है अतएव जिस घर में कन्या का जन्म हुआ है वे निश्चित ही परम भाग्यशाली हैं और दर्शन की दृष्टि से भी लें तो इस पृथ्वी पर जिसका भी जन्म हुआ है उसको अपनी अंतिम यात्रा पर अकेले ही निकालना पड़ता है और वह भी सब कुछ यहीं पर छोड़कर इसी प्रकार कन्या रूपी रत्का जन्म हमें यह तो निश्चित ही ...

कृष्णं वंदे जगद्गुरुं

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(1)  ---- श्रावण मास में शिव आराधना - पवित्र श्रावण मास का अपना एक अलग ही महत्व है। बादलों से रिमझिम वर्षा के बीच मूकबद्ध एवं क्रमबद्ध वृक्षों की उपस्थिति चारों ओर हरियाली एवं सुंदर पुष्पों से सजा हुआ पृथ्वी का आंगन उस आंगन में स्थित शिवलिंग एवं शिवलिंग की समक्ष यह प्रार्थना। कदा निलिंप निर्झरी निकुंज कोटरे वसन। विमुक्त दुरमति सदा शिरस्थ मंजरी वहन।। बिलोल लोल लोचनों ललाम भाल लग्नका। शिवेति मंत्रमुच्चरन कदा सुखी भवाम अहं।। अर्थात, ।। हे सुंदर ललाट वाले भगवान चंद्रशेखर मैं दत्तचित् होकर अपने कुविचारों को त्याग कर श्री गंगा जी के तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआअपने सिर पर हाथ जोड़कर डबडबाई हुई बिहल आंखों से शिव मंत्र का उच्चारण करता हुआ कब सुखी हो जाऊंगा।। ऐसी प्रार्थना निश्चित ही समस्त संसार के लिए कल्याणकारी होगी। श्रावण मास में इस पवित्र श्लोक के साथ भगवान शिव की कृपा भी हम सब पर बरसती रहे। हमारा प्रयास कुछ ऐसा रहे की श्रावण मास के अधिष्ठाता भगवान शंकर की कृपा श्रावण में वर्षा की बूंदौं के साथ हम पर बरस पड़े। जिनकी कृपा से तारे ,सितारे नक्षत्र ,वार ,गृह एवं राशियां सभी अनुकूल हो ...

वैदेही ज्योतिष परामर्श

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 ।समूचे विश्व को ज्यो तिष शास्त्र आवश्यक है। (श्रीमती पूजा अग्निहोत्री दुबे )।    -समूचे विश्व को ज्योतिष शास्त्र आवश्यक है - जिस प्रकार दीपक अंधकार का भक्षण करता है एवं प्रकाश उत्पन्न करके संपूर्ण विषय वस्तु को दृष्टि में ला देता है ।उसी प्रकार ज्योतिष की ज्योति से काल रूपी अंधकार में प्रकाश उत्पन्न करके संपूर्ण विषय वस्तु को जाना जा सकता है। और उससे अनेकानेक लाभ प्राप्त किया जा सकते हैं। जिस प्रकार घड़ी की सुइयां एक मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति को भी समय का ज्ञान करा देती हैं ठीक उसी प्रकार ब्रह्म मंडल में स्थित ग्रह भी संपूर्ण मानव जाति को समय का सही ज्ञान कर कर सही दिशा प्रदान कराने में सहायक होते हैं। प्राचीन काल में मनुष्य काल बेला का विशेष ध्यान रखता था। एवं मुहूर्त आदि पर विशेष श्रद्धा रखता था। मानव के जन्म से लेकर विद्या अध्ययन , यज्ञोपवीत संस्कार , विवाह संस्कार , एवं मृत्यु पर्यंत , तक सभी कार्य में मुहूर्त साधना पर बल दिया जाता था। इस संसार में कर्म ही प्रधान है लेकिन सही मुहूर्त में किया गया कर्म मनुष्य को उसकी मंजिल तक पहुंचने में सहायक होता है अथवा गलत समय में...